वाह भाई वाह...... एक भीमपुत्र कवि की रचना

वाह भाई वाह
काबिले तारीफ हैं
 हम ओर हमारी
अपनी बेशर्मी  ओर कृतघ्नता
अपने आरक्षण के बलिदानियों के प्रति
बस मौज भाई मौज
ओर भी मौज
अरे आंख बंद कर भी  मौज
अनजान ही रहना है
चाहे
कितनी भी करते जाए
सोरी
करते नही  रचते जाए
भीम के बंदों के अपमान
नही शर्मिन्दगी की जुठी मुठी कहानी
पर भीम के कृतघ्न हम मौज ही मौज
बस जय जय जय पुण्य पाप की
सेवा और समाज की
बस चुपचाप देखकर
सोचना
कोई सवाल मत करना
बाकी सब आपकी सोच और संस्कार
की व्यवहारिक होगी कहानी
कितने लापरवाह-------------?

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Jai bhim
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