आरक्षण मौलिक अधिकार है

"आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है"
कल ये टिप्पणी करके सुप्रीम कोर्ट नें आरक्षण पर एक नयी बहस छेड़ दी है।
वैसे आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से पहले हि आज के दौर का सबसे ज्वलंत सवाल बना हुआ है। फेसबुक से लेकर राजनीति तक, रोज कोई ना कोई बिना सोचे समझे और जाने, इस मुद्दे पर कुछ भी बककर चला जाता है। उन्हे लगता है की आरक्षण देश के विकास में बाधक है। (क्यूँ लगता है ? ये मत पूछना )

तमिलनाडु के DMK-CPI-AIADMK समेत कई पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में NEET के तहत मेडिकल कॉलेज में सीटों को लेकर OBC आरक्षण के लिए याचिका दायर की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। साथ हि कोर्ट ने इस याचिका को भी सुनने से इनकार कर दिया।
चलो कोई बात नहीं, हर कोठे के अपने नियम कानून होते है, सुप्रीम कोठे ने ये तय किया है तो ये भी सही ।
लेकिन... लेकिन क्या ये टिप्पणी करने से पहले सुप्रीम कोठे में बैठे दल्लो नें आरक्षण को जरा भी समझा है? उसके नुकसान और फायदों को जाना है? आरक्षण से क्या परिवर्तन आया इस पर गौर किया है?
मुझे लगता है, बिल्कुल भी नहीं ।
क्यूंकि, सुप्रीम कोठे नें जिस तमिलनाडु राज्य के मामले में ये फैसला दिया है, अगर आरक्षण से नुकसान होना होता, तो कई दशक से 69% कोटा लागू करने वाले तमिलनाडु का तो अब तक पतन हो चुका होता । है की नहीं ?
लेकिन जानकार लोगों को यह बताने की क्या जरूरत है कि तमिलनाडु आज देश के सबसे विकसित राज्यों में है । मानव विकास के UN के मानकों पर देश के राज्यों में सिर्फ महाराष्ट्र ही अब तमिलनाडु से आगे हैं (और महाराष्ट्र में भी 68% आरक्षण लागू है) 
स्कूल ड्रॉपआउट तमिलनाडु में न्यूनतम स्तर पर है।
आबादी बढ़ने की दर के मामले में यह लगभग सभी बड़े राज्यों से बेहतर स्थिति में है।
नवजात शिशु मृत्यु दर में सबसे तेज कमी इसी राज्य में हुई है।  तमिलनाडु में साक्षरता दर नेशनल एवरेज से लगभग 9%ऊपर यानी 82% को पार कर चुकी है। 
भारत में मिड डे मील योजना तमिलनाडु शुरू हुई थी, और कामयाबी से चल रही है।
छात्र-छात्राओं को यहां लैपटॉप सबसे पहले बांटे गये थे । 
तमिलनाडु का सेक्स रेशियो भारत के एवरेज से बहुत बेहतर है।
जन्म देते समय माताओं के मरने की राष्ट्रीय दर 20.7 है जबकि तमिलनाडु में यह 6.6 है।
....ये आंकड़े तमिलनाडु सरकार के नहीं बल्कि भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं के हैं। ...... ये तो सर्वाधिक आरक्षण वाले समग्र राज्य की तस्वीर है।
वास्तव में जिन क्षेत्रों में आरक्षण है उन क्षेत्रों की स्तिथि उनसे बेहतर है, जहाँ आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
दो उदाहरण देना चाहूंगा
"खेल और न्यायपालिका "
इन दोनों क्षेत्रों में आरक्षण नहीं है और इनकी स्तिथि क्या है किसी से छुपी भी नहीं है। न्यायालय में न्याय के नाम पर न्याय का इंतजार करने वालों को मरने तक सिर्फ तारीख़ मिलती है और खेल में 125 करोड़ का देश ओलम्पिक में सिर्फ एक गोल्ड मेडल को तरस जाता है।
खेल और न्यायपालिका इन क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था हो जाये फिर देखना कमाल !
....... कुछ तो बात है... आरक्षण में !
और हाँ, जिन लोगों को लगता है की आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की आरक्षण कोई गरीबी हटाओ परियोजना का हिस्सा नहीं है, उसके लिए पहले से हि सैंकड़ो योजनाएं चल रही है।
आरक्षण प्रतिनिधित्व की व्यवस्था है।
और जो प्रतिनिधित्व का मतलब नहीं समझते, वो एक दिन सिर्फ एक दिन दलितों की जिंदगी जीकर देख ले तो सब अक्ल ठिकाने आजायेगी ।
#आरक्षण_मौलिक_अधिकार_है
#कोलोजियम_सिस्टम_कलंक_है
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---Giriraj

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Jai bhim
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