iNDIAN NURSES HUB

Indian nurses hub is a association of Registered Nurses and Nursing Students

Indian Nurses hub association is comprised of nursing majors and those interested in the profession of nursing
Indian nurses hub work to provide opportunity for personal , intellectual, professional and social growth of its members.
The Indian Nurses Hub was established to address the problems, inequities and problems prevalent in the field of nursing education and nursing medicine. Due to the efforts made by the organization, the nursing education and medical world is getting strengthened and the efforts of improvement by the organization are going on continuously as there is a great need for improvement in the field of nursing education and medicine.


The National President of Indian Nurses Hub is Mr. Prem Miral who is always in the forefront of Nursing interests Work to take the problems related to the nursing profession to the government through tweets, strikes, letters. 

Jay Bheem - Movie review

Movie review - Jay Bheem 2021

Initial release: 2 November 2021
Director: TJ Gnanavel
Music by: Sean Roldan
Production company: 2D Entertainment
Distributed by: Amazon Prime Video
Editor: Philomin Raj


यह फिल्म 'जय भीम' का सम्पूर्ण सारसूत्र हैं  फिल्म के आखिरी में फिल्माया गया दृश्य को देखते हुए हम अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते  इसका अर्थ और जय भीम शीर्षक की सार्थकता सम्पूर्ण फिल्म देखने के बाद इस दृश्य के साथ ही समझ आती हैं  इस दृश्य में सिंघनी की बेटी जस्टिस चंदू के साथ स्टाइलिश अंदाज में अखबार पढ़ रही है और जस्टिस चंदू उसको पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है । यह दृश्य बाबा साहब के उस संदेश को प्रचारित करता है कि ‘शिक्षा शेरनी का वह दूध है जो पियेगा वो दहाड़ेगा’ । 

यह फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित हैं  फिल्म शुरू होती हैं 90 के दशक (1995) के उस दृश्य से जहाँ कुछ लोगों की जेल से रिहाई होती हैं  भेदभाव के इस पहले दृश्य में ही जातीय घृणा से सने पुलिस वाले कैदियों को जाति पूछ कर किसी को एक लाइन खड़ा करते हैं तो किसी को घर जाने को कहते हैं  जिन लोगों को लाइन में खड़ा किया जाता हैं दरअसल उन्हें वे आदिवादी-दलित और घृणास्पद बकरे मानते हैं और उन्हें फिर से अलग-अलग IPC की डबल धाराएं लगाकर ज़बरन जेल के अंदर ठूंस दिया जाता हैं और रोते-बिलखते रह जाते हैं उनके परिजन 

निर्माता मनीष शाह और २डी एंटरटेनमेंट-गोल्डमीन्स टेलीफिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड कि संयुक्त प्रस्तुति हैं ये फिल्म  प्रोड्यूसर फिल्म के मुख्य अभिनेता ज्योतिका सूर्या एवं दिग्दर्शक-पटकथा लेखक टी जे.गणनवेल हैं  मूल फिल्म तमिल भाषा में बनी हैं जिसे चार अन्य भाषाओँ में भी डब किया गया हैं I फिल्म की कहानी तमिलनाडु राज्य, जिला विल्लुपुरम, गाँव कोनामलै के एक मेहनतकश खुशहाल आदिवासी परिवार दम्पति के जीवन में पुलिसिया प्रशासन द्वारा किये गए बेइंतहा ज़ुल्मो-सितम की हैं  इस आदिम आदिवासी समुदाय की गर्भवती महिला अपने पति की तलाश करती है, जो पुलिस हिरासत से गायब है। इसलिए उनके पति को खोजने और उनके लिए न्याय की मांग करने के लिए, उनकी आवाज के रूप में, एक उच्च न्यायालय का वकील समर्थन में खड़ा होता है। क्या न्याय की उनकी लड़ाई सफल होगी? इसके लिए आपको पूरी फिल्म को आद्योपांत देखना होगा

'जय भीम' जैसे शीर्षक से फ़िल्में बनना इस बात की तस्दीक करता हैं कि मौजूदा दौर में सिनेमा में बदलाव की ज़बरदस्त बयार चली हैं खासकर टॉलीवुड में जिन क्षेत्रों में वंचित वर्ग के दरवाज़े लगभग बंद थे वहां वे अपने उपस्थिति दमदार ढंग से पेश कर रहे हैं I सोशल मिडिया और इंटरनेट की सहज उपलब्धता ने यह काम आसान कर दिया हैं I किताबों, कलाओं की भांति सिनेमा भी सामाजिक जागरण का एक सशक्त माध्यम हैं बशर्ते व्यवसायिक हितों के साथ सार्थक फिल्मों का निरंतर निर्माण होता रहे  'जय भीम' जैसी फ़िल्में सामाजिक बदलाव के सम्बन्ध में चर्चा-विचारणा के लिए सार्थक पहल हैं  इसके लिए इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, मुख्य अभिनेता-अभिनेत्रियों के साथ पर्दे के पीछे कार्यरत समस्त टेक्निशियंस बधाई के पात्र हैं I बाकी फिल्म की पूरी कहानी का मजा आप खुद देखकर लीजिये, ढाई घंटे की यह मूवी हर भारतीय को देखनी चाहिए 

फिल्म के अंतिम फ्रेम की स्लाइड में मराठी कविता की कुछ पंक्तियाँ (आंग्ल भाषा में अनुदित) तैरती हैं जिसे देखते-पढ़ते हुए दर्शक इस फिल्म से विदा लेता हैं  -

JAI BHIM MEANS LIGHT ...

JAI BHIM MEANS LOVE ...

JAI BHIM MEANS JOURNEY

FROM DARKNESS TO LIGHT ...

JAI BHIM MEANS TEARS

OF BILLIONS OF PEOPLE !

        (MARATHI POETRY)

आरक्षण मौलिक अधिकार है

"आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है"
कल ये टिप्पणी करके सुप्रीम कोर्ट नें आरक्षण पर एक नयी बहस छेड़ दी है।
वैसे आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से पहले हि आज के दौर का सबसे ज्वलंत सवाल बना हुआ है। फेसबुक से लेकर राजनीति तक, रोज कोई ना कोई बिना सोचे समझे और जाने, इस मुद्दे पर कुछ भी बककर चला जाता है। उन्हे लगता है की आरक्षण देश के विकास में बाधक है। (क्यूँ लगता है ? ये मत पूछना )

तमिलनाडु के DMK-CPI-AIADMK समेत कई पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में NEET के तहत मेडिकल कॉलेज में सीटों को लेकर OBC आरक्षण के लिए याचिका दायर की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। साथ हि कोर्ट ने इस याचिका को भी सुनने से इनकार कर दिया।
चलो कोई बात नहीं, हर कोठे के अपने नियम कानून होते है, सुप्रीम कोठे ने ये तय किया है तो ये भी सही ।
लेकिन... लेकिन क्या ये टिप्पणी करने से पहले सुप्रीम कोठे में बैठे दल्लो नें आरक्षण को जरा भी समझा है? उसके नुकसान और फायदों को जाना है? आरक्षण से क्या परिवर्तन आया इस पर गौर किया है?
मुझे लगता है, बिल्कुल भी नहीं ।
क्यूंकि, सुप्रीम कोठे नें जिस तमिलनाडु राज्य के मामले में ये फैसला दिया है, अगर आरक्षण से नुकसान होना होता, तो कई दशक से 69% कोटा लागू करने वाले तमिलनाडु का तो अब तक पतन हो चुका होता । है की नहीं ?
लेकिन जानकार लोगों को यह बताने की क्या जरूरत है कि तमिलनाडु आज देश के सबसे विकसित राज्यों में है । मानव विकास के UN के मानकों पर देश के राज्यों में सिर्फ महाराष्ट्र ही अब तमिलनाडु से आगे हैं (और महाराष्ट्र में भी 68% आरक्षण लागू है) 
स्कूल ड्रॉपआउट तमिलनाडु में न्यूनतम स्तर पर है।
आबादी बढ़ने की दर के मामले में यह लगभग सभी बड़े राज्यों से बेहतर स्थिति में है।
नवजात शिशु मृत्यु दर में सबसे तेज कमी इसी राज्य में हुई है।  तमिलनाडु में साक्षरता दर नेशनल एवरेज से लगभग 9%ऊपर यानी 82% को पार कर चुकी है। 
भारत में मिड डे मील योजना तमिलनाडु शुरू हुई थी, और कामयाबी से चल रही है।
छात्र-छात्राओं को यहां लैपटॉप सबसे पहले बांटे गये थे । 
तमिलनाडु का सेक्स रेशियो भारत के एवरेज से बहुत बेहतर है।
जन्म देते समय माताओं के मरने की राष्ट्रीय दर 20.7 है जबकि तमिलनाडु में यह 6.6 है।
....ये आंकड़े तमिलनाडु सरकार के नहीं बल्कि भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं के हैं। ...... ये तो सर्वाधिक आरक्षण वाले समग्र राज्य की तस्वीर है।
वास्तव में जिन क्षेत्रों में आरक्षण है उन क्षेत्रों की स्तिथि उनसे बेहतर है, जहाँ आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
दो उदाहरण देना चाहूंगा
"खेल और न्यायपालिका "
इन दोनों क्षेत्रों में आरक्षण नहीं है और इनकी स्तिथि क्या है किसी से छुपी भी नहीं है। न्यायालय में न्याय के नाम पर न्याय का इंतजार करने वालों को मरने तक सिर्फ तारीख़ मिलती है और खेल में 125 करोड़ का देश ओलम्पिक में सिर्फ एक गोल्ड मेडल को तरस जाता है।
खेल और न्यायपालिका इन क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था हो जाये फिर देखना कमाल !
....... कुछ तो बात है... आरक्षण में !
और हाँ, जिन लोगों को लगता है की आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की आरक्षण कोई गरीबी हटाओ परियोजना का हिस्सा नहीं है, उसके लिए पहले से हि सैंकड़ो योजनाएं चल रही है।
आरक्षण प्रतिनिधित्व की व्यवस्था है।
और जो प्रतिनिधित्व का मतलब नहीं समझते, वो एक दिन सिर्फ एक दिन दलितों की जिंदगी जीकर देख ले तो सब अक्ल ठिकाने आजायेगी ।
#आरक्षण_मौलिक_अधिकार_है
#कोलोजियम_सिस्टम_कलंक_है
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---Giriraj

शिक्षा और मिडिल क्लास



मिडिल क्लास की शिक्षा क्षेत्र में चुनोत्ती

शिक्षा क्षेत्र में मिडिल क्लास बीच में फंच जाता है वो अपने बच्चो को पढ़ना तो चाहता है लेकिन जरुरते पूरी नहीं होने पर बच्चो से काम करवाना आवश्यक हो जाता है 
अच्छी स्कूल में फीस ज्यादा होने पर पास स्थित सरकारी स्कूल में भेजा जाता है वहा टीचर तो इंटेलिजेंट होते है लेकिन कभी उनकी कमी या कभी दूसरे क्षेत्रों में उनकी डयूटी, और उपर से उन स्कूलों में संसाधनों की कमी भी तो होती है।

सरकार जितना पैसा उद्योगपतियों को लोन देने में करती हैं उतना ही स्कूलों में देकर बच्चो को अच्छी शिक्षा दे सकती है वैसे भी कई उद्योगपति पैसे लेकर भाग जाते है  तो अपने देश के ही बच्चे है वो पढ़ेंगे तो आने वाले समय में उनकी तरक्की पक्की है।
कॉलेज पढ़ाई के साथ बिज़नेस की इंटर्नशिप भी करवाई जानी चाहिए जिससे उन अलग अलग क्षेत्रों के बारे में ज्ञान प्राप्त हो सके
मिडल क्लास की इन चुनौतियों को पढ़ाई ही उपर उठा सकती है
डॉक्टर आंबेडकर जी ने शिक्षा से अपना ही नहीं बल्कि पूरे देश में दलित, पिछड़े, महिला इत्यादि सभी को न्याद दिला दिया था ।
तो वो अपना खुद का तो कर ही सकते है
बाबासाहेब ने कहा था कि शिक्षा उस शेरनी का दूध है जो पिएगा वो जरूर दहादेगा
शिक्षा से बड़ा गरीबी भगाने का कोई हथियार है ही नहीं
अनपढ़ लोग आधे से ज्यादा को तो पता नहीं होने के कारण योजनाओं का से लाभ नहीं उठा सकते और कोई लेते है तो उसमें भी कमिशन चला जाता है और कारण बस एक ही है अशिक्षा 
गरीब और गरीब होता जाता है, अमीर और अमीर होता जाता है और मिडिल क्लास बीच में पिचता रहता है
जय भारत

कोरोना काल के साईकिल द्वारा यात्रा आत्मनिर्भर मजबूरी

##आपदा_को_अवसर_बनाओ


बिहार की एक लड़की ज्योति, हजारों किलोमीटर दूर से सायकल पर अपने पिता को बिठाये हुए अपने घर पहुँचती है! वह बहादुर है! आत्मनिर्भर है! इसमें कोई शक नहीं है!

पूरी यात्रा के दौरान तंत्र सोया हुआ है! ज्योति की तरह लाखों लोग अलग अलग तरीकों से बचते बचाते अपने घर पहुंचे! बिना किसी मदद के!

यहाँ तंत्र का पेपर बहुत ही खराब चला गया है क्योंकि उसकी तमाम तैयारियों की पोल खुल गयी! भयंकर नेगेटिव मार्किंग हुई!

...और तंत्र को ये बात पता है! अब वह अपने अगले पेपर पर फोकस करता है ताकि नेगेटिव मार्किंग की इस खाई को पाटा जा सके! लेकिन यहाँ भी वह अंडबंड जवाब दे रहा है!

उसने ज्योति को साइकिल गिफ्ट में दे दी! महिमामण्डित कर रहे हैं कि....बेटी बहुत बहादुर है! हजारों किलोमीटर साइकिल चलाकर आयी है! देश का नाम रोशन कर दी है..ब्ला ब्ला!

आप ज्योति को वीरांगना कह लो! प्रतिभावान बता दो!"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" का ब्रांड अम्बेसडर घोषित कर दो! साइकिल की बजाय तुम उसके घर पर हेलीकॉप्टर बांध दो....

लेकिन उसके ठीक नीचे एक प्रश्न और है!


ज्योति की साइकिल यात्रा आत्मनिर्भर मजबूरी

-ज्योति को हजारों किलोमीटर साइकिल क्यों चलानी पड़ी? इसमें तंत्र के योगदान का उल्लेख करें!

बिहार की एक लड़की ज्योति, हजारों किलोमीटर दूर से सायकल पर अपने पिता को बिठाये हुए अपने घर पहुँचती है! वह बहादुर है! आत्मनिर्भर है! इसमें कोई शक नहीं है!

पूरी यात्रा के दौरान तंत्र सोया हुआ है! ज्योति की तरह लाखों लोग अलग अलग तरीकों से बचते बचाते अपने घर पहुंचे! बिना किसी मदद के!

यहाँ तंत्र का पेपर बहुत ही खराब चला गया है क्योंकि उसकी तमाम तैयारियों की पोल खुल गयी! भयंकर नेगेटिव मार्किंग हुई!

...और तंत्र को ये बात पता है! अब वह अपने अगले पेपर पर फोकस करता है ताकि नेगेटिव मार्किंग की इस खाई को पाटा जा सके! लेकिन यहाँ भी वह अंडबंड जवाब दे रहा है!

उसने ज्योति को साइकिल गिफ्ट में दे दी! महिमामण्डित कर रहे हैं कि....बेटी बहुत बहादुर है! हजारों किलोमीटर साइकिल चलाकर आयी है! देश का नाम रोशन कर दी है..ब्ला ब्ला!

आप ज्योति को वीरांगना कह लो! प्रतिभावान बता दो!"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" का ब्रांड अम्बेसडर घोषित कर दो! साइकिल की बजाय तुम उसके घर पर हेलीकॉप्टर बांध दो....

लेकिन उसके ठीक नीचे एक प्रश्न और है!

-ज्योति को हजारों किलोमीटर साइकिल क्यों चलानी पड़ी? इसमें तंत्र के योगदान का उल्लेख करें!

Happy new year 2019

भीम वार्ता टीम की ओर से सभी मूलनिवासी साथियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं कामना करते हैं कि आप सभी एकजुट होकर समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करेंगे जय भीम जय भारत


हाॅर्न धीरे बजाओ मेरा बहुजन समाज सो रहा है

एक ट्रक के पीछे लिखी ये पंक्ति झकझोर गई...!!

"हाॅर्न धीरे बजाओ मेरा बहुजन समाज  सो रहा है "...!!!
Bhimvarta

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उस पर एक कविता इस प्रकार है कि.....
'ब्राहम्णो के जुल्म सितम से...
फूट फूटकर 'रोया' है...!!
'धीरे' हाॅर्न बजा रे पगले....
बहुजन समाज सोया है...!!
भीम जी जाने के बाद चैन' मिला है...
'पूरी' नींद से सोने दे...!!
जगह मिले वहाँ 'साइड' ले ले...
हो शोषण  तो होने दे...!!
किसे जगाने की चिंता में...
तू इतना जो 'खोया' है...!!
'धीरे' हाॅर्न बजा रे पगले ...हमारा बहुजन  समाज  सोया है....!!!
आरक्षण के सब 'नियम' पड़े हैं...
कब से 'बंद' किताबों में...!!
'जिम्मेदार' समाज वाले...
सारे लगे गुलामी में...!!
तू भी कर दे  झूटे वादे
क्यों 'ईमान' में खोया है..??
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले...
'बहुजन सोया है...!!!
गुलामी की इन सड़कों पर...
सभी क़दम मिला चलते हैं...!!
आवाज़ उठाने वाले मर के चलते बनते हैं
मेरे समाज  की लचर विधि से...
'भला'मनुवादी का होया है...!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले....
'बहुजन समाज सोया है....!!!
मेरा समाज है 'सिंह' सरीखा...
सोये तब तक सोने दे...!!
'गुलामी की इन सड़कों पर...
नित शोषण ' होने दे...!!
समाज  जगाने की हठ में तू....
क्यूँ दुख में रोया है...!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले..
बहुजन समाज सोया है....!!!
अगर समाज  यह 'जाग' गया तो..ब्राम्हण  'सीधा' हो जाएगा....!!
आर.एस एस.वाले 'चुप' हो जाएँगे....
और मनुवादी  रो जायेगा...!!
अज्ञानता से 'शर्मसार' हो ....
बाबा भीम  भी रोया है..!!
धीरे हाॅर्न बजा रे पगले...
बहुजन समाज सोया है...!!!
समाज  हमारा सोया है....!!!
जय भीम जय संविधान

Kaala movie

काला.….

कल समय मिला तो 'काला ' फिल्म देखने का विचार आया
घोर आश्चर्य हुआ की एकाएक यह फिल्म सिर्फ एक हफ्ते में  दिल्ली के सिनेमाघरो से गायब कैसे हो गई? जबकि इस फ़िल्म की कमाई 100 करोड़ से अधिक है।

फिर इसके पटकथा का ध्यान आया जो मिडिया ने इसको रेटिंग दी है । मुख्य मिडिया के हिसाब से इसकी पटकथा दलित अस्मिता के हिसाब के लिखी गई है अतः रेटिंग 1.5 दी है।
Image@bahujantv

आप में से बहुतों ने फिल्म देख ली होगी , कहानी सबको पता ही होगी , रिव्यू या आलोचना पद्व ही ली होगी? किन्तु मैंने फिल्म अभी देखी है अतः इसपर लिखने से अपने आप को रोक नहीं पाया।

बहुत खोजने के बाद उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे लोनी बॉर्डर के पुराने और सिंगल पर्दे वाले सिनेमाघर में यह फिल्म लगी हुई मिली।

अब इस फिल्म की कहानी के पात्रों के नाम देखिये-

रजनीकांत का नाम काला है, काला रंग असुरों का होता है ऐसा ग्रँथ कहते हैं। फिल्म में काला शूद्र ही है। काला हमेशा काले कपड़े पहनता है।

काला के अधिकतर सीन में बैकग्राउंड में बुद्ध, अंबेडकर, लेनिन, मार्क्स की तस्वीरें दिखती है। बुद्ध विहार दिखता है।

नानापटेकर का नाम हरि अभ्यांकर है, हरि विष्णु का नाम है जो वैदिको के प्रमुख देवता है। हरि के आराध्य राम है, राम की मूर्ति उसके ऑफिस से लेके घर तक हर जगह  मिलती है।

हरि सफ़ेद कपडे पहनता है, काले रंग से उसे घृणा है। वह कहता है कि काला रंग गंदगी का होता है यंहा ध्यान देने की बात है कि ऋग्वेद में भी काले असुरों के प्रति घृणा है , उनके प्रति हिंसात्मक कार्यवाई है।

हरि की कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम 'मनु' है , मनु कौन थे और शूद्रो के प्रति क्या व्यवहार था यह सब जानते हैं।

काला के एक बेटे का नाम 'लेनिन' है, काला की प्रेमिका मुस्लिम है। काला ने एक देसी कुत्ता पाला हुआ है जिसका नाम भैरव होता है।

एक सीन पर लेनिन रोता है तो काला उसे डांटते हुए कहता है कि " रोता क्यों है? क्या इसी लिए मैंने तुझे एक क्रांतिकारी का नाम दिया था?"

हरि के बड़ा  नेता है, अपने पोस्टर पर लिखवाता है ' I am patriot , I will clean our country ' वह धारवी को 'डिजिटल ' बनाने का नारा देता है।

आप  मौजूदा एक बड़े नेता के कथन से इसे जोड़ के देखिये जो ' देशभक्त' होने का सर्टिफिकेट बांटता है, और 'स्वच्छ भारत ' नारा दे के चुनाव जीत गया है, वह ' डिजिटल भारत ' के नाम पर देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल कर दिया है यह आप जानते हैं।

काला के बेटे लेनिन की गर्लफ्रेंड जो की एक विरोधी और क्रांतिकारी प्रवृति की है , एक सीन में एक सेकेंड के लिए अपने छोटे से घर की लाइट जलाती है तो अम्बेडकर की तस्वीर दिखती है।

हरि अपने को राम समझता है और काला को रावण।

हरी  ' स्वच्छता अभियान ' की आड़ में अपनी ' मनु' कंपनी के जरिये धारवी जो की काला की बस्ती है, जंहा छोटी जाति /मुस्लिम आदि  गरीब लोग रहते है  जिन्होंने धारवी को अपनी मेहनत से खड़ा किया है, उस पर कब्ज़ा कर उसे तुड़वाके अमीरो के लिए बिल्डिंग्स और गोल्फ कोर्स बनवाना चाहता है।

वह धारवी के लोगो को उनकी जमीनों की एवज में छोटे छोटे कमरे देना चाहता है,काम धंधे के लिए अमीरो के घर नौकर बनने को कहता है।

धारवी प्रतीकात्मक रूप है भारत मूल लोगो की  जमीन का और मनु कंपनी प्रतीकात्मक रूप है उस पर कब्ज़ा करने वालो का और मूल लोगो को गुलाम बनाने का ।

काला एक सीन में अम्बेडकर का डायलॉग बोलता है' मैं अपने लोगो के अधिकारों के लिए स्वार्थी हूँ'

हरि पैर छूने की संस्कृति को उच्च मानता है जबकि काला हाथ मिलाने की। काला के अनुसार हाथ मिलाने से समानता की भावना आती है जबकि पैर छूने से दासता की।

हरि जब काला से हारने लगता है तो धारवी में 'हिन्दू मुस्लिम' दंगे करने की फ़िराक में रहता है, एक मस्जिद में सूअर का मॉस फिंकवा देता है। चुनाव जींतने के लिए हिन्दू मुस्लिम दंगे की ट्रिक किसकी है यह आप जानते हैं।

काला हरि के विरोध में धारवी के लोगो से अमीरों के घर काम बंद करने को कहता है ,और असहयोग आंदोलन चलवा देता है।

मिडिया उस आंदोलन की जम बुराई करती है यंहा तक की शान्ति पूर्ण आंदोलन को आतंकी आंदोलन बता देती है, यह सीन  मौजूदा मिडिया के रवैये को हूब हु दर्शाता है जो  दलितों के अधिकतर आंदोलन को आतंकी आंदोलन बता देती है। गोदी मिडिया जो काम करती है वैसी ही।

एक सीन बंद के दौरान लोगो को संबोधित करते हुए एक पुलिसवाला ' जय भीम'  के नारे लगा देता है।

काला एक डायलॉग बोलता है' अगर अपने अतीत की जड़े नहीं पहचानोगे तो भविष्य में खड़े कैसे रह पाओगे? "

हरि काला को मरवाने के लिए रामायण का पाठ अपने घर रखवाता है। काला मारा जाता है, किन्तु बस्ती के सभी लोग काला बन जाते हैं।

अंत में हरि के सफ़ेद कपड़ो पर पहले काला रंग गिरता है , फिर लाल और फिर नीला। ये तीनो रंग का अर्थ आप जानते हैं , काला दक्षिण का , लाल कम्युनिस्ट का और नीला अम्बेडकर का। हरि की सफ़ेद कमीज तीनो रंगों से सराबोर हो जाती है और वह मारा जाता है।

शूद्र/ दलित अस्मिता को लेके बनी ऐसी फिल्म मैंने आज तक बड़े पर्दे पर नहीं देखी , जंहा विरोध है शोषण के प्रति। जंहा खुल के बुद्ध है, अम्बेडकर हैं, लेनिन है, मार्क्स हैं ..... जय भीम है।

आश्चर्य है कि इस फिल्म पर बैन क्यों नहीं लगा अभी तक? शायद रजनीकांत और पा. रंजीथ फिल्म है इसलिए ऐसा नहीं हो पाया। किन्तु धूर्तता से इसे सिनेमाघरो से एक ही हफ्ते में उतार लिया गया।

सैल्यूट पा. रंजीथ , जो की स्वयं एक दलित है अतः ऐसी हिम्मत कर पाएं ।

फिल्म का हर दृश्य, बैकग्राउंड दृश्य, डायलॉग अपने आप में एक संदेश देता है, गूण रहस्य लिए हुए है, 'स्वच्छता अभियान' और 'डिजिटल इंडिया'' के नारे की आड़ में क्या होता है यह बखूबी दिखाया है।

यह फिल्म दो मुद्दों पर एक साथ प्रहार करती है, पहला ' स्वच्छ भारत' और ' डिजिटल इंडिया' की हकीकत तथा दूसरा भारत के मूल लोगो की जमीनों को कैसे हड़प के उन्हें गुलाम बनाया गया।

सभी कलाकरों के अभिनय जबरजस्त है, नानापटेकर ने  हरि अभ्यंकर के रोल में बहुत जानदार  ऐक्टिंग की है, रजनीकांत की तो खैर बात ही अलग है।

आप इस फिल्म को देखिये जरूर...मेरी तरफ से रेटिंग 4.5

साभार — संजय जी , Go Atheist व्हाट्सएप ग्रुप से 

कविता - ये दलितों की बस्ती हैं

बोतल महँगी है तो क्या हुआ,
थैली खूब सस्ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

यहाँ जन्मते हर बालक को, पकड़ा देते हैं झाडू।
वो बेटा, अबे, साले,
परे हट, कहते हैं लालू कालू

गोविंदा और मिथुन बन कर,
खोल रहे हैं नाली।
दूजा काम इन्हें ना भाता इसी काम में मस्ती है।।
ये दलितो की बस्ती है ।

सूअर घूमते घर आंगन में,
झबरा कुत्ता घर द्वारे
वह भी पीता वह भी पीती,
पीकर डमरू बाजे
भूत उतारें रातभर,
बस रात ऐसे ही कटती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

ब्रह्मा विष्णु इनके घर में,
कदम कदम पर जय श्रीराम।
रात जगाते शेरोंवाली की......
करते कथा सत्यनाराण..।।
पुरखों को जिसने मारा
उसकी ही कैसिट बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

यहाँ बरात मैं बलि चढ़ाते,
मुर्गा घेंटा और बकरा
बेटी का जब नेग करें,
तो माल पकाते देग भरा
जो जितने ज्यादा देग बनाये
उसकी उतनी हस्ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

तू चूहड़ा और मैं चमार हूँ,
ये खटीक और वो कोली।
एक तो हम कभी बन ना पाये,
बन गई जगह जगह टोली।।
अपना मुक्तिदाता को भूले,
गैरों की झांकी सजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।।

हर महीने वृंदावन दौड़े,
माता वैष्णो छ: छ: बार।
गुडगाँवा की जात लगाता, सोमनाथ को अब तैयार।।
बेटी इसकी चार साल से,
दसवीं में ही पढ़ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

बेटा बजरंगी दल में है,
बाप बना भगवा धारी भैया हिन्दू
परिषद में है, बीजेपी में महतारी।
मंदिर मस्जिद में गोली,
इनके कंधे चलती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

आर्य समाजी इसी बस्ती में,
वेदों का प्रचार करें
लाल चुनरिया ओढ़े,
पंथी वर्णभेद पर बात करें
चुप्पी साधे वर्णभेद पर,
आधी सदी गुजरती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

शुक्रवार को चौंसर बढ़ती,
सोमवार को मुख लहरी।
विलियम पीती मंगलवार को,
शनिवार को नित जह़री।।
नौ दुर्गे में इसी बस्ती में,
घर घर ढोलक बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

नकली बौद्धों की भी सुन लो,
कथनी करनी में अंतर।
बात करें बौद्ध धम्म की,
घर में पढ़ें वेद मंतर।।
बाबा साहेब  की तस्वीर लगाते,
इनकी मैया मरती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

औरों के त्यौहार मनाकर,
व्यर्थ खुशी मनाते हैं।
हत्यारों को ईश मानकर,
गीत उन्हीं के गाते है।।
चौदह अप्रैल को बाबा साहेब की जयंती,
याद ना इनको रहती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

डोरीलाल इसी बस्ती का,
कोटे से अफसर बन बैठा।
उसको इनकी क्या पड़ी अब,
वह दूजों में जा बैठा।।
बेटा पढ़ लिखकर शर्माजी,
बेटी बनी अवस्थी है।
ये दलितो की बस्ती है ।

भूल गए अपने पुरखों को,
महामही इन्हें याद नहीं।
अम्बेडकर बिरसा बुद्ध,
वीर ऊदल की याद नहीं।
झलकारी को ये क्या जानें,
इनकी वह क्या लगती है।
ये दलितो की बस्ती है ।

मैं भी लिखना सीख गया हूँ,
गीत कहानी और कविता।
इनके दु:ख दर्द की बातें, मैं
भी भला कहाँ लिखता था।।
कैसे समझाऊँ अपने लोगों को मैं,
चिंता यही खटकती ये दलितों की बस्ती है।।

जय भीम
जय भारत
@अज्ञात 

अनमोल वचन #bhimrao ambedkar

Anmol vachan dr bhimrao ambedkar
"मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्‍छा है, मेरे बताए हुए रास्‍ते पर चलें।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"रात रातभर मैं इसलिये जागता हूँ क्‍योंकि मेरा समाज सो रहा है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती, वह कौम कभी भी इतिहास नहीं बना सकती।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"मैं राजनीति में सुख भोगने नहीं बल्कि अपने सभी दबे-कुचले भाईयों को उनके अधिकार दिलाने आया हूँ।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"मनुवाद को जड़ से समाप्‍त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्षय है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"जो धर्म जन्‍म से एक को श्रेष्‍ठ और दूसरे को नीच बनाए रखे, वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"राष्‍ट्रवाद तभी औचित्‍य ग्रहण कर सकता है, जब लोगों के बीच जाति, नरल या रंग का अन्‍तर भुलाकर उसमें सामाजिक भ्रातृत्‍व को सर्वोच्‍च स्‍थान दिया जाये।"
   *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"मैं तो जीवन भर कार्य कर चुका हूँ अब इसके लिए नौजवान आगे आए।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"अच्छा दिखने के लिए मत जिओ बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ!"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"जो झुक सकता है वह सारी दुनिया को झुका भी सकता है!"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"लोकतंत्र सरकार का महज एक रूप नहीं है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"एक इतिहासकार, सटीक, ईमानदार और निष्‍पक्ष होना चाहिए।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"संविधान, यह एक मात्र वकीलों का दस्‍तावेज नहीं। यह जीवन का एक माध्‍यम है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"किसी का भी स्‍वाद बदला जा सकता है लेकिन जहर को अमृत में परिवर्तित नही किया जा सकता।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"न्‍याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"मन की स्‍वतंत्रता ही वास्‍तविक स्‍वतंत्रता है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"इस दुनिया में महान प्रयासों से प्राप्‍त किया गया को छोडकर और कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"ज्ञान व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार हैं।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

"शिक्षा जितनी पुरूषों के लिए आवशयक है उतनी ही महिलाओं के लिए।"
  *डॉ. भीम राव अम्बेडकर*

    " जय भीम - जय भारत "जय संविधान

Dalit Calandring

दलित कैलेंडर तथा  दलित महापुरुषों की जयंतियां पुण्यतिथि आदि की जानकारी

जनवरी

1 जनवरी 1818 भीमा कोरेगांव की लड़ाई
1 जनवरी 1848 फुले दंपति ने लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल पुणे में खोला
3 जनवरी 1831 सावित्री बाई फुले जयंती (सर्वशिक्षा दिवस)
12 जनवरी 1972 चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (जिज्ञासु का जन्म वर्ष 1885 में हुआ, तिथि ज्ञात नहीं)
13 जनवरी 1874 तिलका मांझी शहादत दिवस
24 जनवरी 1924 कर्पूरी ठाकुर जयंती
26 जनवरी 1950 भारत का संविधान लागू हुआ

फरवरी

2 फरवरी 1922 जगदेव प्रसाद जयंती
2 फरवरी 1949 मोतीरावण कंगाली जयंती
7 फरवरी 1993 ललई सिंह यादव परिनिर्वाण दिवस
11 फरवरी 1750 तिलका मांझी जयंतीमाघ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
(विक्रम संवत के अनुसार) रैदास जयंती
(रैदास जयंती विक्रम संवत के अनुसार मनाई जाती है। यह दिन अंग्रेजी कैलेण्डर में प्रायः जनवरी या फरवरी माह में आता है। हर वर्ष इसकी तारीख अलग-अलग होती है।)
23 फरवरी 1873 गाडगे जयंती

मार्च

10 मार्च 1997 सावित्रीबाई फुले परिनिर्वाण दिवस
15 मार्च 1934 कांशी राम जयंती
23 मार्च 1931 भगत सिंह शहीद दिवस
23 मार्च 1910 राम मनोहर लोहिया जयंती

 अप्रैल

4 अप्रैल 1890 झलकारीबाई शहादत दिवस
5 अप्रैल 1908 जगजीवन राम जयंती
11 अप्रैल 1827 जोतीराव फुलेे जयंती
11 अप्रैल 1943 लाल सिंह दिल जयंती
14 अप्रैल 1891आंबेडकर जयंती

चैत शुक्ल अष्टमी
 (विक्रम संवत के अनुसार)अशोक जयंती
(अशोक जयंती विक्रम संवत के अनुसार मनाई जाती है। यह दिन अंग्रेजी कैलेण्डर में प्रायः अप्रैल माह में आता है। हर वर्ष इसकी तारीख अलग-अलग होती है।)
वैशाख शुक्ल तृतीय
(विक्रम संवत के अनुसार)बसव जयंती
(बसव जयंती विक्रम संवत के अनुसार मनाई जाती है। यह दिन अंग्रेजी कैलेण्डर में प्रायः अप्रैल या मई माह में आता है। हर वर्ष इसकी तारीख अलग-अलग होती है।)

मई

1 मईअंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस
6 मई 1922 शाहूजी महाराज परिनिर्वाण दिवस
6 मई 1879 अछूतानंद जयंती
11 मई 1952 बोधानंद परिनिर्वाण दिवस

जून

1 जून 1873 जोतिबा फुले की किताब गुलामगिरी प्रकाशित
9 जून 1900 बिरसा मुंडा शहादत दिवस
18 जून 1941अयंकलि परिनिर्वाण दिवस
जेठ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
(विक्रम संवत के अनुसार)कबीर जयंती
(कबीर जयंती विक्रम संवत के अनुसार मनाई जाती है. यह दिन अंग्रेजी कैलेण्डर में प्रायः जून माह में आता है. हर वर्ष इसकी तारीख अलग-अलग होती है)
26 जून 1874 शाहूजी महाराज जयंती
30 जून 1855 हुल दिवस (सिद्धू-कान्हू शहादत दिवस)

जुलाई

10 जुलाई 1971भिखारी ठाकुर परिनिर्वाण दिवस
22 जुलाई 1933अछूतानंद परिनिर्वाण दिवस
26 जुलाई 1902 आरक्षण दिवस

अगस्त

7 अगस्त 1990 मंडल दिवस (ओबीसी आरक्षण के लागू करने की घोषणा)
9 अगस्तविश्व आदिवासी दिवस (संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1994 में घोषित किया कि हर वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगा।)
14 अगस्त 2007 लाल सिंह दिल परिनिर्वाण दिवस
15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस
20 अगस्त 1856 नारायण गुरु जयंती
22 अगस्त 1923 रामस्वरूप वर्मा जयंती
28 अगस्त 1863 अयंकलि जयंती

सितम्बर

1 सितम्बर 1911 ललई सिंह यादव जयंती
11 सितम्बर 1957 थियाकी इमेन्यूल सीकरन परिनिर्वाण दिवस
17 सितम्बर 1879 ईवी रामास्वामी पेरियार जयंती
20 सितम्बर 1928 नारायण गुरु परिनिर्वाण दिवस
24 सितम्बर 1873 सत्यशोधक समाज स्थापना दिवस
27 सितम्बर 1907 भगत सिंह जयंती

अक्टूबर

9 अक्टूबर 2006 कांशीराम का निधन
9 अक्टूबर 1924 थियाकी इमेन्युल सीकरन जयंती
14 अक्टूबर 1956 डॉ आंबेडकर का धर्मान्तरण  दिवस (धम चक्र प्रवर्तन दिवस)
15 अक्टूबर 1934 पहली बार देवदासी प्रथा विरोधी बिल पास हुआ (बाम्बे विधान परिषद)अश्विन शुक्ल शरद पूर्णिमा
(विक्रम संवत के अनुसार)महिषासुर शहादत दिवस
(महिषासुर शहादत दिवस विक्रम संवत के अनुसार मनाई जाती है। यह दिन अंग्रेजी कैलेण्डर में प्रायः अक्टूबर माह में आता है। हर वर्ष इसकी तारीख अलग-अलग होती है।)
30 अक्टूबर 2015 मोतीरावण कंगाली परिनिर्वाण दिवस

नवम्बर

15 नवंबर 1875 बिरसा मुंडा जयंती
20 नवंबर 1923 आरएल चंदापुरी जयंती
22 नवंबर 1830 झलकारीबाई जयंती
26 नवंबर 1949 भारतीय संविधान का प्रारूप डा. आबेडकर ने पेश किया
28 नवंबर 1890 जोतिबा फुले परिनिर्वाण दिवस

दिसम्बर

4 दिसंबर 1889 टंट्या भील शहीद दिवस
6 दिसंबर 1956 आंबेडकर परिनिर्वाण दिवस
18 दिसंबर 1756 घासीदास जयंती
18 दिसंबर 1887 भिखारी ठाकुर जयंती
20 दिसंबर 1858 गोविंद गुरु जयंती
20 दिसंबर 1956 गाडगे परिनिर्वाण दिवस
21 दिसम्बर 1982 अनूपलाल मंडल परिनिर्वाण दिवस
24 दिसंबर 1973 पेरियार परिनिर्वाण दिवस
25 दिसंबर 1927 मनुस्मृति दहन दिवस

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आबूरोड में जिग्नेश मेवाणी जी का भव्य स्वागत

आबूरोड | गुजरात में विधायक जिग्नेश मेवाणी जी के आबूरोड आगमन पर डॉ. अंबेडकर सेवा समिति और भीम सेना तथा भीमआर्मी ने मानपुर चौराहे पर साफा व माला पहना कर स्वागत किया।





 इस मौके मेवानी ने कहा कि हम सभी बहुजनों को एकजुट होकर मनुवादी ताकतों को परास्त करना होगा। अंबेडकर सेवा समिति के विधानसभा प्रभारी गणपत मेघवाल, अंबेडकर सेवा समिति के तहसील अध्यक्ष राजेंद्र परमार, डॉ. राम मीणा,  अंबेडकर सेवा समिति तहसील अध्यक्ष पिंडवाड़ा मांगीलाल परिहार, प्रवीण चौहान ने भी विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कैलाश डांगी ने किया।
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कार्यक्रम में अंबेडकर सेवा समिति के तोलाराम मेघवाल, दिनेश परमार, प्रेम मिरल, भुपेन्द्र कुमार, गणपत अहम्पा, भागीरथ, पूर्व पार्षद नवीन सांखला, माधव मारू,विष्णु ,अमराराम मेघवाल आदि मौजूद थे। 

वाह भाई वाह...... एक भीमपुत्र कवि की रचना

वाह भाई वाह
काबिले तारीफ हैं
 हम ओर हमारी
अपनी बेशर्मी  ओर कृतघ्नता
अपने आरक्षण के बलिदानियों के प्रति
बस मौज भाई मौज
ओर भी मौज
अरे आंख बंद कर भी  मौज
अनजान ही रहना है
चाहे
कितनी भी करते जाए
सोरी
करते नही  रचते जाए
भीम के बंदों के अपमान
नही शर्मिन्दगी की जुठी मुठी कहानी
पर भीम के कृतघ्न हम मौज ही मौज
बस जय जय जय पुण्य पाप की
सेवा और समाज की
बस चुपचाप देखकर
सोचना
कोई सवाल मत करना
बाकी सब आपकी सोच और संस्कार
की व्यवहारिक होगी कहानी
कितने लापरवाह-------------?

बलात्कार व अत्याचार के खिलाफ कैंडल मार्च17अप्रैल को

आबूरोड़- सभी साथियों को सूचित किया जाता है कि देश में अपनी बहन & बेटीयो  के साथ बढ़ रहे बलात्कार व अत्याचार के खिलाफ दिनांक 17अप्रैल
2018 को शाम 5 बजे रेलवे स्टेशन , आबुरोड में कैंडल मार्च का आयोजन किया जाएगा तो आप सभी भाई -बंधुओ से निवेदन है कि आप समय पर पधारकर कैंडल मार्च आयोजन को सफल बनावें ।
निवेदक - भीम आर्मी , आबुरोड ।
सम्पर्क सूत्र - 9783518060,
9672944772,
9694989529,
9057218584

प्रतिभा सम्मान समारोह 8 अप्रैल को

आबूरोड़ - अंबेडकर सेवा समिति व भीम सेना आबूरोड़ के संयुक्त तत्वाधान में प्रथम जिला स्तरीय भीम प्रज्ञा सम्मान समारोह व स्नेह मिलन कार्यक्रम 8 अप्रैल को प्रातः 1O बजे से विष्णु टॉकिज केसरगंज आबूरोड़ में आयोजित होगा ।
Bhim army
Bhim army @bhimvarta
माननीय भंवर मेघवंशी , माननीय प्रेमाराम देवासी, माननीय मोईनुदीन खान के आतिथ्य में SC,ST,OBC तथा अल्पसंख्यक प्रतिभाएं सम्मानित होगी
Aburoad pratibha smman samaroh
Aburoad news
Aburoad bhim army

Sc/st act मेंं बदलाव के विरोध मेंं आबूरोड़ बंद सफल

SC ST ऐप्स के बदलाव में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के विरोध में आबूरोड सफल बंद रहा ।




आबू रोड को बंद करवाने में भीम सैनिकों ने बढ़-चढ़कर चढ़कर भाग लिया 1 अप्रैल शाम को बाइक रेली निकालकर भारत बंद में समर्थन मांगा 2 अप्रैल सुबह 6:00 बजे से आंबेडकर चौक मानपुर में भीम सैनिक एकत्रित होकर रैली प्रारंभ की जो साईं बाबा मंदिर होते हुए मैन बाजार , सदर मार्केट से सातपुर तक फिर सातपुर से डाक बंगले तक रैली निकाली तथा डाक बंगले में SDM को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया । रैली में करीबन 2500 से ज्यादा भीम सैनिकों ने भाग लिया सबके हाथों में नीले झंडे माथे पर नीला तिलक सिर पर जय भीम, संविधान विरोधी बात छोड़ो नारे वाली टोपी लगाकर "जब जब जुल्मी जुल्म करेगा सत्ता के हथियारों से चप्पा चप्पा गूंज उठेगा जय भीम के नारों से" बोलते हुए पूरे जोश में रैली निकाली । रैली में अंबेडकर सेवा समिति के अध्यक्ष राजेंद्र परमार , तोला राम मेघवाल ,गणपत मेघवाल, प्राचार्य आशुतोष मीणा, लालाराम गरासिया , गंगाबेन गरासिया , तथा भीम आर्मी के अध्यक्ष खेमराज परिहार , प्रेम मिरल , भूपेंद्र कुमार , धारू राम बोस, गजेंद्र मेघवाल, मनीष गहलोत, नकुल मेहरा ,संग्राम राणा ,गणपत लाल अहम्पा ,जामता राम केम्पाल ,सुरेश कोली ,नेनाराम अहम्पा इत्यादि सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे। 

भीमआर्मी की बैठक 1अप्रैल को

🙏🙏भीम आर्मी  आबुरोड🙏🙏🙏🙏
 
    समस्त युवा साथियो,बहुजन समाज के कर्णधार बुद्धिजीवी वर्ग,बहुजन समाज के पुज्नीय व सलाहकार {SC,ST,OBCअल्पसंख्यक} से निवेदन है कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आगामी 14अप्रेल संविधान निर्माता बाबासाहब जयन्ति समारोह की पुर्व तैयारी के लिए दिनांक 01/4/2018 रविवार को बैठक रखी गयी है,अत:आप सभी साथियों को पुन:निवेदन है कि इस दिन आप सभी अपना कीमती समय निकालकर जरूर पधारे व आपकी राय व सहयोग दे।समय सुबह 9.00 बजे
स्थान - ऋषिकेश रोड, गणेश मंदिर , मानपुर आबुरोड 
निवेदक:- भीम आर्मी आबुरोड ।
Contact No. 9783518060 ,
                      9057218584 ,
                      9672944772,
                      9694989529

Hardik pandya ke khilaf FIR

जोधपुर / - जोधपुर की एक निचली अदालत में हार्दिक पंड्या के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं
. यह मामला भारतीय संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने से संबंधित है.

बाबा साहेब डॉक्टर बी आर अंबेडकर जीवनी


विश्व रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर

भीमरावरामजीआंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के सैन्य छावनी मऊ में हुआ था।  वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं व अंतिम संतान थे।  उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले मे है, से संबंधित था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा मे सूबेदार के पद पर थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होने अपने बच्चों को स्कूल में पढने और कड़ी मेहनत करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया । कबीरपंथ से संबंधित इस परिवार में, रामजी सकपाल, अपने बच्चों को हिंदू ग्रंथों को पढ़ने के लिए, विशेष रूप से महाभारत और रामायण प्रोत्साहित किया करते थे। उन्होने सेना मे अपनी हैसियत का उपयोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से शिक्षा दिलाने मे किया, क्योंकि अपनी जाति के कारण उन्हें इसके लिये सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद आंबेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चों को विद्यालय मे अलग बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो ध्यान ही दिया जाता था, न ही कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने प‍र कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। मनुवादियों की धारणा यह थी की ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था। 1894 मे रामजी सकपाल सेवानिवृत्त हो जाने के बाद सपरिवार सतारा चले गए और इसके दो साल बाद, अम्बेडकर की मां की मृत्यु हो गई। बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाये। अपने भाइयों और बहनों मे केवल अम्बेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल मे जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे उनके कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम “अंबावडे” पर आधारित था । रामजीसकपाल ने 1898 मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई चले आये। यहाँ अम्बेडकर एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। पढा़ई में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, अम्बेडकर लगातार अपने विरुद्ध हो रहे इस अलगाव और, भेदभाव से व्यथित रहे। 1907 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये। उनकी इस सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी और बाद में एक सार्वजनिक समारोह उनका सम्मान किया गया इसी समारोह में उनके एक शिक्षक कृषणजी अर्जुन केलूसकर ने उन्हें महात्मा बुद्ध की जीवनी भेंट की, श्री केलूसकर, एक मराठा जाति के विद्वान थे। अम्बेडकर की सगाई एक साल पहले हिंदू रीति के अनुसार दापोली की, एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी।  1908 में, उन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह छात्रवृत्ति प्राप्त की ।1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने अपने पहले बेटे यशवंत को इसी वर्ष जन्म दिया। अम्बेडकर अपने परिवार के साथ बड़ौदा चले आये पर जल्द ही उन्हें अपने पिता की बीमारी के चलते बंबई वापस लौटना पडा़, जिनकी मृत्यु 2 फरवरी 1913 को हो गयी।
शिक्षा
1922 में एक वकील के रूप में अम्बेडकर
गायकवाड शासक ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय मे जाकर अध्ययन के लिये अम्बेडकर का चयन किया गया साथ ही इसके लिये एक 11.5 डॉलर प्रति मास की छात्रवृत्ति भी प्रदान की। न्यूयॉर्क शहर में आने के बाद, अम्बेडकर को राजनीति विज्ञान विभाग के स्नातक अध्ययन कार्यक्रम में प्रवेश दे दिया गया। शयनशाला मे कुछ दिन रहने के बाद, वे भारतीय छात्रों द्वारा चलाये जा रहे एक आवास क्लब मे रहने चले गए और उन्होने अपने एक पारसी मित्र नवल भातेना के साथ एक कमरा ले लिया। 1916 में, उन्हे उनके एक शोध के लिए P.hd से सम्मानित किया गया। इस शोध को अंततः उन्होंने पुस्तक “इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया” के रूप में प्रकाशित किया। हालाँकि उनकी पहला प्रकाशित काम, एक लेख जिसका शीर्षक, भारत में जाति : उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास है। अपनी डाक्टरेट की डिग्री लेकर अम्बेडकर लंदन चले गये जहाँ उन्होने ग्रे’स इन और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में कानून का अध्ययन और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट शोध की तैयारी के लिये अपना नाम लिखवा लिया। अगले वर्ष छात्रवृत्ति की समाप्ति के चलते मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौर बीच मे ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पडा़ ये विश्व युद्ध प्रथम का काल था। बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक फिर से आये भेदभाव से अम्बेडकर उदास हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार बंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। 1920 में कोल्हापुर के महाराजा अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। 1923 में उन्होंने अपना शोध प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के, साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार मे बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये अम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। उन्हे औपचारिक रूप से ८ जून 1927 को कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा पी . एच. डी. प्रदान की गयी ।
छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष
भारत_सरकार_अधिनियम 1919, तैयार कर रही साउथबोरोह समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर अम्बेडकर को गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका (separate electorates) और आरक्षण देने की वकालत की। 1920 में, बंबई में, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन जल्द ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब अम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका अम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। अम्बेडकर ने अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली और बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् 1926 में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन 1927 में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने महड में अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की पानी की मुख्य टंकी से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया।
1 जनवरी 1927 को डॉ. अम्बेडकर ने द्वितीय आंग्ल – मराठा युद्ध, की कोरेगाँव की लडा़ई के दौरान मारे गये भारतीय सैनिकों के सम्मान में कोरेगाँव विजय स्मारक मे एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये। 1927 में, उन्होंने अपना दूसरी पत्रिका बहिष्कृत भारत शुरू की और उसके बाद रीक्रिश्टेन्ड जनता की। उन्हें बाँबे प्रेसीडेंसी समिति मे सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग 1928 में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध मे भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये और जबकि इसकी रिपोर्ट को ज्यादातर भारतीयों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया, डॉ अम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिशों लिखीं।
पूना (पैक्ट)संधि
दूसरा गोलमेज सम्मेलन अब तक डॉ अम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। अम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास गांधी की आलोचना की, उन्होने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। अम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होने अस्पृश्य समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो। 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने मे है।
राजनीतिक काम ने उसको रूढ़िवादी हिंदुओं के साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं मे भी बहुत अलोकप्रिय बना दिया, यह वही नेता थे जो पहले छुआछूत की निंदा करते थे और इसके उन्मूलन के लिये जिन्होने देश भर में काम किया था। इसका मुख्य कारण था कि ये “उदार” राजनेता आमतौर पर अछूतों को पूर्ण समानता देने का मुद्दा पूरी तरह नहीं उठाते थे। अम्बेडकर की अस्पृश्य समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज की भावी पीढी़ को हमेशा के लिये विभाजित कर देगी।
1932 मे जब ब्रिटिशों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की,  तब गांधी ने इसके विरोध मे पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया। गाँधी ने रूढ़िवादी हिंदू समाज से सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता को खत्म करने तथा, हिंदुओं की राजनीतिक और सामाजिक एकता की बात की। गांधी के अनशन को देश भर की जनता से घोर समर्थन मिला और रूढ़िवादी हिंदू नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं जैसे पवलंकर बालू और मदन मोहन मालवीय ने अम्बेडकर और उनके समर्थकों के साथ यरवदा मे संयुक्त बैठकें कीं। अनशन के कारण गांधी की मृत्यु होने की स्थिति मे, होने वाले सामाजिक प्रतिशोध के कारण होने वाली अछूतों की हत्याओं के डर से और गाँधी जी के समर्थकों के भारी दवाब के चलते अंबेडकर ने अपनी पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली। इसके एवज मे अछूतों को सीटों के आरक्षण, मंदिरों में प्रवेश/पूजा के अधिकार एवं छूआ-छूत ख़तम करने की बात स्वीकार कर ली गयी। गाँधी ने इस उम्मीद पर की बाकि सभी स्वर्ण भी  पूना_संधि का आदर कर, सभी शर्ते मान लेंगे अपना अनशन समाप्त कर दिया ।
आरक्षण प्रणाली में पहले दलित अपने लिए संभावित उमीदवारों में से चुनाव द्वारा (केवल दलित) चार संभावित उमीदवार चुनते। इन चार उम्मीदवारों में से फिर संयुक्त निर्वाचन चुनाव (सभी धर्म \ जाति) द्वारा एक नेता चुना जाता। इस आधार पर सिर्फ एक बार सन 1937 में चुनाव हुए। आंबेडकर 20-25 साल के लिये आरक्षण चाहते थे लेकिन गाँधी के अड़े रहने के कारण यह आरक्षण मात्र 5 साल के लिए ही लागू हुआ ।
पृथक निर्वाचिका में दलित दो वोट देता एक सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को ओर दूसरा दलित (पृथक) उम्मीदवार को। ऐसी स्थिति में दलितों द्वारा चुना गया दलित उम्मीदवार दलितों की समस्या को अच्छी तरह से तो रख सकता था किन्तु गैर उम्मीदवार के लिए यह जरूरी नहीं था कि उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास भी करता। बाद मे अम्बेडकर ने गाँधी जी की आलोचना करते हुये उनके इस अनशन को अछूतों को उनके राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने और उन्हें उनकी माँग से पीछे हटने के लिये दवाब डालने के लिये गांधी द्वारा खेला गया एक नाटक करार दिया। उनके अनुसार असली महात्मा तो ज्योति राव फुले थे ।
राजनीतिक_जीवन
अक्टूबर 1935, को येओला नासिक मे अम्बेडकर एक रैली को संबोधित करते हुए  13 अक्टूबर 1935 को, अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। इसके चलते अंबेडकर बंबई में बस गये, उन्होने यहाँ एक बडे़ घर का निर्माण कराया, जिसमे उनके निजी पुस्तकालय मे 50000 से अधिक पुस्तकें थीं।  इसी वर्ष उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर अंबेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। अम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दु तीर्थ मे जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है इसके बजाय उन्होने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कही। भले ही अस्पृश्यता के खिलाफ उनकी लडा़ई को भारत भर से समर्थन हासिल हो रहा था पर उन्होने अपना रवैया और अपने विचारों को रूढ़िवादी हिंदुओं के प्रति और कठोर कर लिया। उनकी रूढ़िवादी हिंदुओं की आलोचना का उत्तर बडी़ संख्या मे हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी उनकी आलोचना से मिला। 13 अक्टूबर को नासिक के निकट येओला मे एक सम्मेलन में बोलते हुए अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की अपनी इच्छा प्रकट की। उन्होने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया ।  उन्होने अपनी इस बात को भारत भर मे कई सार्वजनिक सभाओं मे दोहराया भी।
1936 में, अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 15 सीटें जीती। उन्होंने अपनी पुस्तक जाति के विनाश भी इसी वर्ष प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क मे लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस सफल और लोकप्रिय पुस्तक मे अम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी़ निंदा की। अम्बेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे।
1941 और 1945 के बीच में उन्होंने बड़ी संख्या में अत्यधिक विवादास्पद पुस्तकें और पर्चे प्रकाशित किये जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ भी शामिल है, जिसमें उन्होने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। वॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स (काँग्रेस और गान्धी ने अछूतों के लिये क्या किया) के साथ, अम्बेडकर ने गांधी और कांग्रेस दोनो पर अपने हमलों को तीखा कर दिया उन्होने उन पर ढोंग करने का आरोप लगाया। उन्होने अपनी पुस्तक ‘हू वर द शुद्राज़?’( शुद्र कौन थे?) के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से अछूत, शुद्रों से अलग हैं। अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन मे बदलते देखा, हालांकि 1946 में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए हुये चुनाव में इसने खराब प्रदर्शन किया। 1948 में हू वर द शुद्राज़? की उत्तरकथा द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध) मे अम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।
संविधाननिर्माण
अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व मे आई तो उसने अम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम मे अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की। इस कार्य में अम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया।
संघ रीति मे मतपत्र द्वारा मतदान, बहस के नियम, पूर्ववर्तिता और कार्यसूची के प्रयोग, समितियाँ और काम करने के लिए प्रस्ताव लाना शामिल है। संघ रीतियाँ स्वयं प्राचीन गणराज्यों जैसे शाक्य और लिच्छवि की शासन प्रणाली के निदर्श (मॉडल) पर आधारित थीं। अम्बेडकर ने हालांकि उनके संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल इस्तेमाल किया है पर उसकी भावना भारतीय है। अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान पाठ मे संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली शुरू के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया, भारत के विधि निर्माताओं ने इस सकारात्मक कार्यवाही के द्वारा दलित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन और उन्हे हर क्षेत्र मे अवसर प्रदान कराने की चेष्टा की जबकि मूल कल्पना मे पहले इस कदम को अस्थायी रूप से और आवश्यकता के आधार पर शामिल करने की बात कही गयी थी। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, अम्बेडकर ने कहा
मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया इस मसौदे मे उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके खिलाफ़ थी। अम्बेडकर ने 1952 में लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा पर हार गये। मार्च 1952 मे उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।
बौद्ध धर्म मे परिवर्तन
दीक्षा भूमि नागपुर  जहां अम्बेडकर अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म मे परिवर्तित हुए।
सन् 1950 के दशक में अम्बेडकर बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध भिक्षुओं व विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका (तब सीलोन) गये। पुणे के पास एक नया बौद्ध विहार को समर्पित करते हुए, अम्बेडकर ने घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक लिख रहे हैं और जैसे ही यह समाप्त होगी वो औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लेंगे। 1954 में अम्बेडकर ने बर्मा का दो बार दौरा किया; दूसरी बार वो रंगून मे तीसरे विश्व बौद्ध फैलोशिप के सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये। 1955 में उन्होने भारतीय बुद्ध महासभा या बौद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना की। उन्होंने अपने अंतिम लेख, द बुद्ध एंड हिज़ धम्म को 1956 में पूरा किया। यह उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुआ। 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अम्बेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अम्बेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इसके बाद उन्होने एक अनुमान के अनुसार लगभग 500000 समर्थको को बौद्ध धर्म मे परिवर्तित किया। नवयान लेकर अम्बेडकर और उनके समर्थकों ने हिंदू धर्म और हिंदू दर्शन की स्पष्ट निंदा की और उसे त्याग दिया। इसके बाद वे नेपाल में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन मे भाग लेने के लिए काठमांडू गये। उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध या कार्ल मार्क्स को 2 दिसंबर 1956 को पूरा किया।
डॉ अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं. 800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था। उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं। ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं। इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म, जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है।
मृत्यु महापरिनिर्वाण
अन्नाल अम्बेडकर मनिमंडपम 1948 से, अम्बेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया और 1955 के दौरान किये गये लगातार काम ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसम्बर 1956 को अम्बेडकर की मृत्यु नींद में दिल्ली में उनके घर मे हो गई। 7 दिसंबर को चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली मे अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया।
मृत्युपरांत अम्बेडकर के परिवार मे उनकी दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर रह गयी थीं जो, जन्म से ब्राह्मण थीं पर उनके साथ ही वो भी धर्म परिवर्तित कर बौद्ध बन गयी थीं। विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। सविता अम्बेडकर की एक बौद्ध के रूप में सन 2002 में मृत्यु हो गई, अम्बेडकर के पौत्र, प्रकाश यशवंत अम्बेडकर, भारिपा बहुजन महासंघ का नेतृत्व करते है और भारतीय संसद के दोनों सदनों मे के सदस्य रह चुके है। कई अधूरे टंकलिपित और हस्तलिखित मसौदे अम्बेडकर के नोट और पत्रों में पाए गए हैं। इनमें वैटिंग फ़ोर ए वीसा जो संभवतः 1935-36 के बीच का आत्मकथानात्मक काम है और अनटचेबल, ऑर द चिल्ड्रन ऑफ इंडियाज़ घेट्टो जो 1951 की जनगणना से संबंधित है। एक स्मारक अम्बेडकर के दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित किया गया है। अम्बेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ॰ अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर, डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था। अम्बेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।
मुंबई मे उनके स्मारक हर साल लगभग पाँच लाख लोग उनकी वर्षगांठ (14 अप्रैल) पुण्यतिथि (6 दिसम्बर) और धम्म चक्र परिवर्तन् दिन 14 अक्टूबर नागपुर में, उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इकट्ठे होते हैं। सैकड़ों पुस्तकालय स्थापित हो गये हैं और लाखों रुपए की पुस्तकें बेची जाती हैं। अपने अनुयायियों को उनका संदेश था !’
शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।
फिल्म
जब्बार पटेल ने सन 2000 मे डॉ॰ बाबा साहेब अम्बेडकर नामक हिन्दी फिल्म बनाई थी। इसमे अम्बेडकर की भूमिका माम्मूटी मे निभाई थी। भारत के राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम और सामाजिक न्याय मंत्रालय के द्वारा प्रायोजित, यह फिल्म प्रदर्शन से पहले एक लंबी अवधि तक विवादो मे फँसी रही।
यू. सी. एल. ए. मे मानव शास्त्र के प्रोफेसर और ऐतिहासिक नृवंश विवरणकार, डॉ॰ डेविड ब्लुंडेल फिल्मों की एक श्रृंखला बनाने की दीर्घकालिक परियोजना बनाई है जो उन घटनाओं पर आधारित है जो भारत में समाज कल्याण की स्थिति के बारे में ज्ञान और इच्छा को प्रभावित करती है। ए राएज़िग लाइट डॉ॰ बी आर अम्बेडकर के जीवन और भारत में सामाजिक कल्याण की स्थिति पर आधारित थी ।

SC, ST एक्ट में हुआ बड़ा बदलाव, जानेंं क्या थी इसकी ताकत

11 सितंबर 1989 को राजीव गांधी की सरकार द्वारा संसद के पटल पर एक विधेयक रखा गया जो निम्न प्रकार था

”अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तमाम सामाजिक आर्थिक बदलावों के बावजूद उनकी स्थिति बेहतर नहीं हुई है । क्रुरता के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें उन्हें अपनी संपत्ति के साथ जान भी गंवानी पड़ी है ।जब भी ये लोग अपने अधिकारों की बात करते हैं और किसी गलत बात का विरोध करते हैं, ताकतवर लोग उन्हें डराने की कोशिश करते हैं. जब भी एससी-एसटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग अपनी और अपनी महिलाओं के आत्मसम्मान की बात करते हैं, प्रभावशाली लोग उन्हें अपमानित करते हैं। ऐसी स्थितियों में सिविल राइट ऐक्ट 1955 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किए गए प्रावधान उन्हें न्याय दिलाने में कमजोर पड़ रहे हैं। गैर एससी-एसटी लोगों की ओर से एससी-एसटी समुदाय के लोगों पर किए जा रहे अत्याचार को चिह्नित करने में दिक्कत आ रही है । ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि उनके खिलाफ होने वाले अत्याचार को परिभाषित किया जाए और ऐसे लोगों को सजा देने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं ।इसके अलावा राज्य और संघ शासित प्रदेश भी एससी-एसटी की सुरक्षा के लिए कानून बनाएं और जिसके साथ अत्याचार हो, उनके पुनर्वास की व्यवस्था करें.”

इन दलीलों के साथ केंद्र सरकार ने संसद में एक विधेयक पास किया. जिसे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 कहा गया । संसद से पास होने के बाद इस विधेयक पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद 30 जनवरी 1990 को इस कानून को जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया ।इसके बाद अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार ने इस कानून में कुछ संसोधन किए। इन संसोधनों के साथ 14 अप्रैल 2016 से इस कानून को फिर से लागू किया गया ।

किस पर लागू होता है ये कानून

ये कानून देश के हर उस शख्स पर लागू होता है, जो अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) का सदस्य नहीं है. अगर ऐसा कोई शख्स एससी-एसटी से ताल्लुक रखने वाले किसी शख्स का उत्पीड़न करता है, तो उसके खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई की जाती है.

क्या करता है ये कानून

अगर कोई शख्स किसी भी तरह से किसी अनुसूचित जाति या जनजाति से संबंध रखने वाले किसी शख्स को प्रताड़ित करता है, तो उसके खिलाफ ये कानून कम करता है. और उस अपराध के लिए आईपीसी की धाराओं के अलावा इस कानून के तहत भी सजा भुगतनी होती है. इसके अलावा ये कानून पीड़ितों को विशेष सुरक्षा देता है. इस कानून के तहत पीड़ित को अलग-अलग अपराध के लिए 75,000 रुपये से लेकर 8 लाख 50 हजार रुपये तक की सहायता दी जाती है. साथ ही ऐसे मामलों के लिए इस कानून के तहत विशेष अदालतें बनाई जाती हैं जो ऐसे मामलों में तुरंत फैसले लेती हैं. इस ऐक्ट के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों में पीड़ितों को राहत राशि और अलग से मेडिकल जांच की भी व्यवस्था है. एससी-एसटी के खिलाफ मामलों में पीड़ितों को अपना केस लड़ने के लिए सरकार की ओर से आर्थिक मदद भी दी जाती है.

किस-किस अपराध के लिए लागू होता है एससी-एसटी ऐक्ट

# अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों को अपमानित करना. उन्हें जबरन मल, मूत्र खिलाना.

# एससी-एसटी के किसी सदस्य का सामाजिक बहिष्कार.

# किसी एससी-एसटी के साथ कारोबार से इन्कार

# किसी एससी-एसटी को काम न देने या नौकरी पर रखने से इन्कार करने

# किसी एससी-एसटी को किसी तरह की सेवा देने से इन्कार करने



# अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से मारपीट करना.

# उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करना या फिर उन्हें किसी भी तरह से परेशान करना.

# एससी-एसटी समुदाय के किसी शख्स के कपड़े उतारकर उसे नंगा करना या फिर उसके चेहरे पर कालिख पोतना.

# किसी भी तरह से सार्वजनिक तौर पर अपमानित करना.

# जमीन पर जबरन कब्जा करना, गैरकानूनी ढंग से किसी जमीन को हथिया लेना.

# किसी एससी-एसटी समुदाय के शख्स को भीख मांगने के लिए मजबूर करना

# उसे बंधुआ मजदूर बनाना

# वोट देने से रोकना या किसी खास को वोट देने के लिए बाध्य करना.

# किसी महिला को अपमानित करना

# किसी सार्वजनिक जगह पर जाने से रोकना

# अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान छोड़ने पर मजबूर करना

ये सब ऐसे अपराध हैं, जिनमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत कार्रवाई होती है. लेकिन अगर ये अपराध किसी एससी-एसटी के समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शख्स के साथ होता है, तो उसमें आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत भी कार्रवाई होती है.

कितनी होती है सजा

आईपीसी की सजा के अलावा एससी-एसटी ऐक्ट में अलग से छह महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा और जुर्माने की व्यवस्था है. अगर अपराध किसी सरकारी अधिकारी ने किया है, तो आईपीसी के अलावा उसे इस कानून के तहत छह महीने से लेकर एक साल की सजा होती है.

अगर अपराध किसी सरकारी अधिकारी ने कियाा है तो…

अगर कोई सरकारी अधिकारी एससी-एसटी वर्ग से ताल्लुक नहीं रखता है और वो जानबूझकर किसी एससी-एसटी समुदाय के शख्स को परेशान करता है, तो उसे छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है. किसी सरकारी अधिकारी पर केस तभी दर्ज किया जा सकता है, जब पूरे मामले की जांच के दौरान सरकारी अधिकारी दोषी पाया गया हो.

विशेष अदालत की है व्यवस्था

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत विशेष अदालतों की भी व्यवस्था है. अधिनियम की धारा 14 के तहत इस कानून के तहत दर्ज केस के ट्रायल के लिए विशेष अदालत की व्यवस्था की गई है, जो हर राज्य में बनी हुई है.

क्या होती है केस दर्ज होने के बाद की प्रक्रिया

अगर किसी के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो पुलिस उस शख्स को तुरंत गिरफ्तार कर लेती है. इस केस में किसी तरह की अग्रिम जमानत नहीं मिलती है. गिरफ्तारी के बाद जमानत निचली अदालत नहीं दे सकती है, सिर्फ हाई कोर्ट ही जमानत दे सकती है. इसके अलावा किसी शख्स की गिरफ्तारी के 60 दिन के अंदर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होती है. चार्जशीट दाखिल होने के बाद पूरे मामले की सुनवाई विशेष अदालत में होती है, जो एससी-एसटी के मामलों की सुनवाई के लिए बनी होती है।

अब क्या होगा ????


सुप्रीम कोर्ट  20 मार्च को बड़ा बदलाव किया इसके तहत-
1.एससी-एसटी ऐक्ट के मामलों की जांच डिप्टी एसपी अधिकारी करेंगे. पहले ये जांच इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी करते थे.
2.किसी भी सरकारी अधिकारी पर केस दर्ज होने पर ही उसकी गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी. उस सरकारी अधिकारी के विभाग से गिरफ्तारी के लिए इजाजत लेनी होगी.
3.अगर किसी आम आदमी पर एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो उसकी  गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी. उसकी गिरफ्तारी के लिए जिले के एसपी या एसएसपी से इजाजत लेनी होगी.
4.किसी पर केस दर्ज होने के बाद उसे अग्रिम जमानत भी दी जा सकती है. अग्रिम जमानत देने या न देने का अधिकार मैजिस्ट्रेट के पास होगा पहले अग्रीम तो क्या जमानत भी हाई कोर्ट देता था.

आगे क्या होगा ???

मनुवादी  सरकार को पता हैं किआरक्षण को अचानक हटा  दिया जाए तो दंगा हो जाएगा इसलिए ये धीरे धीरे से आरक्षण को हटाने की कोशिश मेंं हैं पहले double roster reservation को हटाया और अब sc/st act को प्रभावहीन कर दिया
जागो अब तो जागो